Saturday, July 30, 2011

अभिब्यक्ति

 जहाँ तक लोकपाल विल का सवाल है एक बात तो स्पस्ट है की जिस तरह से भ्रस्टाचार की मुहीम को 
 आम जन तक पहुचानें मे आन्ना एवम रामदेव ने इसे सार्वजनिक किया ही साथ ही साथ भ्रस्टाचार
के प्रति आम लोंगों की सहभागिता एवम समर्थन भी उत्साह जनक था,और उसी का परिणाम है की आज अभिव्यक्ति को 
एक स्तर और एक नया आयाम भी मिला ? देखना यह होगा की इसकी ध्नात्मकता को क्या अभिव्यक्ति मिलती है और परिणाम पुरे भारतीय समाज पर क्या प्रभाव डालता है Iयहाँ यह कहना प्रासंगिक होगा, और देखना भी होगा की, लोकतान्त्रिक व्यवस्था को कितनी अभिव्यक्ति मीली? और अब उसका प्रकार क्या  होगा,अभिव्यक्ति के कितने आयाम होंगे यह सब  समय के गर्भ मे होगा I लोकपाल विल के पक्ष एवम विपक्ष मे दिए गए तर्कों की गहराई तक जाये तो यह सिद्द होता है की 70 के दसक से वर्तमान तक सत्ता के प्रति जनता मे आक्रोश तो है ही ! ,जो सम्वौधानिक ढांचा  हमारे पुर्वजों ने दी, सत्ता प्राप्ति के बाद सरकरों की नितियों ने जिस तरह पुजीवाद को ब्यक्तिबादी अभिव्यक्ति दी और उन्हे फायदा पहुचाने का कार्य किया जिसका पुरा लाभ पूंजिपतियों को मिला !
और भारतीय संविधान का मूल स्वर हम भारत के लोग... कहिँ खो गया ? समय रह्ते अगर संविधान मे सन्निहित राज्य के नीति निदेशक तत्वो को अगर सरकरों ने उसकी अनदेखी की तो यह तो सरकरों के हित मे  होगा ही राजनीतिक पार्टियों के लिए ही  .......  
  दिनांक २९-जुलाई २०११                              रवि शंकर पाण्डेय                                                                               

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